लेखनी प्रतियोगिता -24-Nov-2021 गांव की गोरी
जल्दी कर वृंदा शहरी बाबू आने वाले हैं।जरा छोरे को भेज ,दिखवा कहाँ तक आई गवत है।
कितने दिनाएं में ,ये शुभ दिन आया है नहीं तो कुछु न कुछेक मुसीबत आई गवत रहत थी।
पहले गाय बीमार हो गवई , फिर तेरा बापू। मैन्नै तो तबीय ही सोच लेत थी तबाऊं विवाह अब की बार करत ही दूंगी ।
तेरे मामा ने शहर से भेजा है ।थारो पढ़ाई लिखाई इसने भा गई।और थारो को देखने वास्ते तैयार हो गवत ।
जल्दी जल्दी हाथ चला छोरी ।और तैयार हो जा मेहमान आने वाले होएगा। अच्छा से तैयार होना।
साड़ी ढंग से पहनवा ।माथे पर छोटी सी बिंदी भी लगाय लिओ । बिटिया माहरी बहुत ही सोणी दिखेंगी।
वृंदा की मां को बहुत बैचैनी हो रही थी। आखिर उसकी बेटी का रिश्ता होना था।
तभी वृंदा का भाई भागता हुआ आया। जिज्जी शहरी बाबू पास के बम्बा (छोटी नदी)तक पहुंच गयो है।
आ छोरा उन्ने लिवाय लात। कहीं छोटी छोटी कच्ची गलियों में इधर-उधर निकल जाए। मैं चुल्हा जला लेती हूँ। मेहमान के लिया कुछेक बनाए लेत हूँ।
अच्छा माँ।
मेहमान के आने के लिए चारपाई बिछाई फिर उस पर नयी चादर डाल दी। आओ मेहमान जी बैठों।और आने में कोई परेशानी तो नाए हुई।
नमस्ते माँजी।
नहीं माँजी अच्छे से आ गये। जा बिटवा पानी ला।
और कोई तुम्रे साथ न आया ।
नहीं माँजी मै अकेला ही हूं माता-पिता बचपन में ही छोड़कर चले गए।चाचा जी ने पाल-पोस कर बड़ा किया है। वह भी अभी बीमार है तो बोले तुम ही देख लें। वैसे भी मामा जी ने आप सभी की बहुत तारीफ की।
अच्छा माँजी जल्दी से वृंदा से मिला दे ।फिर शहर वापस के लिए बस नहीं मिलेगी।
हाँ हाँ बिटवा ।
बिटिया चाय लिया।
तभी वृंदा आंखें नीचे कर हाथों में चाय नाश्ता ट्रे में रखकर लाई। शर्म से गांव लाल हुए जा रहे थे। सरसों की सोने सी चमक रही थी।खन खन गेहूं की बालियों सी उसकी चूड़ियां खनक रही थी।
शहरी बाबू तो देखते रह गये। बोले कितनी पढ़ीं हो।
जी ग्रेजुएशन हो गया है ।
यहां गांव में तो केवल हाई स्कूल की पढाई की।और आनगे की पढ़ाई-लिखाई शहर में ही पूरी हुई है।
माँजी क्या आप हमें अपना गांव दिखवाओगीं ।
हां हां बिटवा। ए छोरा , शहरी बाबू और अपनी दीदी के साथ चला जा शहरी बाबू को गांव देखना है।
छोटा तो कूदता फांदा आगे निकल गया।
पतली पतली पगडंडियों से निकल कर सरसों की लहराती फसल मानो सोना उगले रही थी।तभी वृंदा खेतों के किनारे बनी मुंडेरों पर एक पांव आगे पीछे रख चलने लगी। उसका बैलैंस बिगड़ा तो शहरी बाबू ने हाथ पकड़ कर उसे संभाल लिया। नहीं तो पतली पतली पतनालियो में खेतों की सिचाई के लिए पानी बह रहा था उसमें गिर जाती।
ट्यूबवैल से तेज पानी की धार से बौछारें आ रही थी।
पेडों के पत्ते कभी घूप कभी छांव दे रहे थे। दोनों के चेहरों पर आंख मिचोली खेल रहे थे।
तुम्हारा गांव बहुत सुंदर है और यहां के लोग भी। वृंदा की तरफ इशारा करते हुए कहा। क्या तुम मेरी जिंदगी की धूप में मेरा साया बन मेरी छांव बनोगीं ।
वृंदा शर्मा गई।
शहरी बाबू बोले ...अपने चुल्हे की रोटी अपने हाथ से बनाकर कब खिला रही हो।
वृंदा भागती हुई बोली ..मां से पूछ लेना।
शहरी बाबू ने वृंदा को पसंद की रजामंदी देते हुए कहा.. यहां की आबोहवा मेरे को भा गई है।
माँजी ने अपना आशीर्वाद दिया और शहरी बाबू को शहर वापस जाने के लिए उनको बस तक वृंदा को साथ भेजा।
दोनों एक-दूसरे की आंखों में देखते हुए शहरी बाबू बस में बैठ कर शहर चले गए। वृंदा से एक अटूट रिश्ता बना कर।
Seema Priyadarshini sahay
25-Nov-2021 11:10 AM
सुंदर कहानी मैम
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NEELAM GUPTA
25-Nov-2021 05:05 PM
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
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Gunjan Kamal
24-Nov-2021 11:43 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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NEELAM GUPTA
25-Nov-2021 05:05 PM
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
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Zakirhusain Abbas Chougule
24-Nov-2021 11:34 PM
Nice
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NEELAM GUPTA
25-Nov-2021 05:06 PM
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
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